
आजाद भारत में चर्चित एवं आमजन के विचारों को प्रभावित करने वाले मुद्दों में अयोध्या प्रमुख रहा। यूं तो यह मुद्दा मुगल काल से ही चला आ रहा है था और कभी छोटे – मोटे तो कभी बड़े आंदोलनों का गवाह रहा है परन्तु आजादी के बाद अयोध्या में 22 दिसम्बर 1949 की रात सबसे प्रमुख रही, जब कुछ साधु संतो ने रात में भगवान के प्रगटीकरण की उद्धघोषणा की। संघर्ष की दिशा एवं दशा परिवर्तित की। 12 दिसम्बर 1949 से लेकर 30 अक्टूबर 1990 की गोलीकांड होते हुए 1992 के कारसेवकों के द्वारा विवादित ढांचा के ध्वस्तीकरण का गवाह यह शहर अयोध्या 09 नवम्बर 2019 के सुप्रीम कोर्ट के अपने बारे मे निर्णय की स्वीकारोक्ती का प्रतिक है। यह शहर भारत की राजनीति को मुडते देखा. अपने नाम पर सरकार के उत्थान एवं पतन देखा। नेताओं के करिश्मा को बनते बुझते देखा। अपने आवोहवा में हजारों नारों के गुंज से अहलादित होते देखा तो बंदूक के गोलियों से मरे हुए कारसेवको के खून से सनी वहाँ की मिट्टी एवं सरयू के जल को बारंबार लाल होते हुए देखा । बंदरों से घीरे इस शहर ने राजनीति के सैकड़ो बंदरो से खुद को अपमानित एवं कलंकित होते हुए खुद में समेटे रहा। अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए भारत की राजसत्ता की ओर टकटकी लगाये रहा. अयोध्या भारत का एकलौता शहर है, जो देश की भावनाओ को जोड़ने की ताकत रखता है, अपने परम वैभव के साथ भारत के अस्तित्व से जुड़ा हुआ शहर है।
महर्षि वाल्मीकि अयोध्या के बारे में लिखते है “कोसलो नाम मुदित: स्फीतो जनपदो महान । निविष्टः सरयूतीरे प्रभुत धनधान्यवान्॥“वाल्मीकि जी ने सरयू नदी के तट पर अवस्थित इस नगर की वर्णन बड़े ही भक्ति भाव एवं आलौकिक रूप से किया है. ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मा जी के आदेश पर महाराज मनु ने इस नगर को बसाई थी। महाराज मनु जिनके नाम पर ही आज हम सब मानव कहलाते है, मनुष्य कहलाते है, उन्होने इस महान शहर की आधारशिला रखी थी। उसके बाद अयोध्या को राजधानी बनाने का श्रेय महाराज इक्ष्वाकु को जाता है। भागीरथ जिन्होंने गंगा माता को नदी के रूप में धरती पर लाने का श्रेय जाता है वह भी अयोध्या के ही राजा थे। इसके साथ ही अयोध्या का वर्णन तुलसीदास जी ने भी बालकांड एवं उत्तरकांड में किये है. बालकांड में वो लिखते है “बंद अवधपुरी अति पावनि सरजू सरि कलि कलुष नसावनि ।।“ मतलब मै अति पवित्र अयोध्यापुरी और कलियुग के पापों का नाश करनेवाली सरयू नदी की वंदना करता हूं।
कालांतर में समय की विडम्बना देखिए प्राचीन काल में इतना सम्पन्न, सुसज्जीत, सांस्कृतिक नगर मुगल आक्रान्ताओ के विस्तारवाद एवं इस्लामिक विस्तार का शिकार हुआ एवं वैभव एवं संस्कृति की रक्षा के लिए लाखों लोगों के बलिदानों का गवाह बना। इतने बलिदानों के बाद भी नगर अपनी राग नहीं कर पाया। अपने अस्तित्व के लिए राजनैतिक संघर्षों से होते हुए 22 जनवरी 2024 को पुनः स्थापना के लिए तैयार है। फिर से यह नगर अपने उत्थान एवं सांस्कृतिक संदेश का उद्घोष करने के लिए खड़ा है। आज के समय में अयोध्या भारत की सांस्कृतिक राजधानी की तरह समस्त भारतीयों के भावनाओं के, उनके आसाह – उमंग को अपने में समाहित कर रहा है। अयोध्या अह्लादित है, वहाँ उमंग है, उत्साह है, अपने उत्थान पर गर्वित है, अयोध्या देशवासियों के अपने प्रति भक्तिमय भाव एवं शुद्ध अंतकरण से जुड़ने के दौर में नतमस्तक है। लोकतंत्र की ताकत से अपने विकसित, वर्तमान स्वरूप को महसूस कर रहा है। वेटिकन, मक्का की इत्यादि विश्व के प्रवित्र शहरों की श्रेणी में खड़ा है। आज अयोध्या संवाद का प्रतीक है, समग्रता का प्रतीक है, प्रतिबद्धता का द्योतक है। लोकतंत्र के दोनों पहलुओं का उत्तम उदाहरण है। जो अयोध्या कुछ बर्ष पहले तक अभिशप्त भी राजनैतिक रूप से कुछ के लिए अछूत थी, वह आज सबके लिए तीर्थ है। जाति और धर्म से हटकर हर भारतीय राम पर गर्वित है, उनके मंदिर के भव्यता, दिव्यता पर पूरा देश भावविभोर है। वर्तमान दौर में अयोध्या की विकास गाथा भी समस्त विश्व के लिए उदाहरण है कि अगर प्रतिबद्धता हो, सत्ता संकल्पित हो तो कितना भी मुश्किल कार्य लोकतांत्रिक तरीका से भी संभव है। शायद यह अनूठा उदाहरण है कि इतना विवादास्पद एवं पुराना नगर इतना कम समय में इतना अदभूत और अकल्पनीय रूप से विकसित हो सकता है। एयरर्पोट हो, सड़के हो, बिजली हो, सफाई हो, समस्त नगरीय सुविधा हो, उच्च श्रेणी की व्यवस्था विकसित हो गई। यह अयोध्या नगर की सांस्कृतिक विरासत आर्थिक सम्पन्नता का द्वार खोलने के लिए खड़ा है। बिना किसी शोरगुल के, बिना धरना प्रर्दशन के सैकड़ों मकान तक को अपने जगह से हटाकर कही और परिवर्तित किया गया और शहर का विकास हुआ। नई अयोध्या परंपरा एवं आधुनिकता को अपने में समाहित किए हुए दुनिया के सामने खड़ा है।
आज पूरा देश, समस्त विश्व राममय है, समस्त देशवासी अपने राम की महिमा, राम की मर्यादा, राम के अवतरण, राम के मंदिर में विराजमान होते देख अह्लादित है। भारत का अस्तित्व ही राम से है और राम का अस्तित्व अयोध्या है। आज अयोध्या जो कि मूल सनातन धर्म की पहली पुरी अपनी सांस्कृतिक पहचान को पुन: प्रतिष्ठित कर रही है। यह अयोध्या मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की जन्मभूमि के साथ-साथ उनकी जीवन यात्रा के निर्वासन का गवाह है और फिर समस्त असुरों का नाश करके रामराज्य का आकार लेता है। अयोध्या का विकास केवल नगर का विकास नहीं है अपितु यह एक विश्वास की विजय है। यह एक नायाब उदाहरण है लोक की बहुआयामी चेतना को एकात्मकता की ओर ले जाने की, सदियों की निष्ठा को आदर देने और इस सम्मान के माध्यम से एक संप्रभु भारत की लोकोन्मुख प्रतिज्ञा को पूरा करने का। वर्तमान केंद्र और राज्य सरकार की प्रतिबद्धता तारीफ के काबिल है। समस्त सनातनियों के लिए यह धरती का बैकुंठ और त्रेता के समय से सम्पन्न अयोध्या का पुनर्नवीकरण अपने देश के इतिहास एवं सांस्कृतिक विरासत की महानता को महसूस करने का असाधारण अवसर है। अयोध्या का विकास एवं राममंदिर का निर्माण अध्यात्मिक अनुष्ठान अपने सांस्कृतिक पुनर्जागरण का अवसर है। अयोध्या का विकास एवं राममंदिर धार्मिक नहीं अपितु इसे सांस्कृतिक एवं राष्ट्र गौरव के रूप में महसूस करना चाहिए। भगवान राम के मनुष्यता का संदेश पूरे विश्व को दे सके एवं भारत पुनः अपने सम्पन्न सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक महानता को पहचान सके एवं उसके लिए एक इकाई के रूप विकसित को।
डॉ कौशलेन्द्र बटोही
प्रोफेसर,एन आई टी,जमशेदपुर